Legislative Systems: विधायी व्यवस्थाओं को राजनीतिक वर्चस्व के चश्मे से न देखें: ज्ञान चंद गुप्ता
Legislative Systems
Legislative Systems: चंडीगढ़ में प्रस्तावित हरियाणा की नई विधान सभा(New Legislative Assembly of Haryana) के मसले पर पंजाब के कुछ साथियों ने असहमति या कहें कि विरोध का स्वर मुखर(out loud) किया है। इनमें से ज्यादातर ने इसे राजनीतिक चश्मे(political glasses) से देखने का प्रयास किया है। इस कारण से उन्होंने इस मामले को चंडीगढ़ में हरियाणा के प्रांतीय प्रभुत्व(provincial dominance) या वर्चस्व बढ़ाने के रूप में प्रस्तुत किया है। इस मामले में सबसे बड़ी भूल यह हो रही है कि इसे विधायी व्यवस्थाओं से इतर राजनीतिक नजरिये देखा जा रहा है।
इस मामले की वास्तविकता गत तीन दिन से हो रही बयानबाजी से कोसों दूर है। यह कोई राजनीतिक मसला या राजधानी की लड़ाई का मुद्दा न होकर विशुद्ध रूप से विधायी कामकाज के लिए संसाधन जुटाने का मामला है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली का सम्मान करने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस बात पर सहजता से सहमत होगा कि किसी भी सदन की कार्यवाही के लिए माननीय सदस्यों के लिए बैठने की व्यवस्था करना नितांत आवश्यक है।
विधायी निकायों से जुड़े सचिवालयों का अपना महत्व है। हरियाणा विधान सभा का सदन और सचिवालय के पास उनकी गरिमा के अनुरूप स्थान नहीं है। इसलिए यह विषय राजनीतिक न होकर लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ विधान पालिका की गरिमा और आधुनिक दौर की कार्यशैली के लिए मूलभूत ढांचे से जुड़ा है। जो ढांचा वर्तमान की जरूरतों को भी पूरा करने में असक्षम है, उससे भविष्य के लिए उम्मीद कैसे की जा सकती है? वर्ष 2026 में प्रस्तावित परिसीमन में हरियाणा में विधायकों की संख्या 126 हो सकती है। विधान सभा के मौजूदा सदन में मात्र 90 विधायकों के लिए बैठने का स्थान उपलब्ध है। इसके साथ ही नए दौर की आवश्यकताओं और तकनीकी विकास के साथ-साथ व्यवस्थाओं को विकसित करना अनिवार्य हो चुका है। समाज जीवन के दूसरे क्षेत्रों की तरह राजनीति और विशेषकर संसदीय कामकाज के तौर-तरीकों में शनै-शनै परिवर्तन दस्तक देता रहा है। इस नूतन दौर में हरियाणा विधान सभा को भी समयानुकूल व्यावहारिक व आधुनिक बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
वास्तविक जरूरत का विरोध
हरियाणा की इस वास्तविक जरूरत का विरोध करने वाले नेताओं को वर्तमान विधान भवन में प्रदेश को इसका बनता हिस्सा दिलाने के लिए भी आगे आना चाहिए। नए विधान भवन की आवश्यकता इसके पंजाब से चले आ रहे लंबे विवादों के कारण भी बढ़ी है। हरियाणा राज्य के अस्तित्व में आने के बाद आज करीब 55 वर्ष बाद भी उसे विधान भवन की इमारत के बंटवारे के अनुसार तय हिस्सा नहीं मिल सका है। हरियाणा विधानसभा सचिवालय अपना हक लेने के लिए निरंतर प्रयास करता रहा है।
ऐसा भी नहीं हरियाणा नए विधान भवन की मांग करने वाला देश का इकलौता राज्य है। गत दशकों में जितने भी नए राज्य अस्तित्व में आए हैं, उन सबके नए विधान भवन बने हैं। हरियाणा के मामले में पहले ही बहुत देरी हो चुकी है। छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलगाना, उत्तराखंड इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अनेक राज्य ऐसे भी जिन्होंने अपनी आवश्यकता अनुसार इस प्रकार के निर्माण किए हैं। राजस्थान, गुजरात और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों ने नये विधानभवन बनाए हैं। इतना ही नहीं देश की राजधानी नई दिल्ली में भी नई संसद बनाई जा रही है।
सभी राज्यों के विधान भवनों में ऐसा प्रावधान है कि सत्र के दौरान मंत्रियों के कार्यालय विधान सभा की इमारत में ही होते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारी अपनी इमारत में पंजाब विधानसभा वाले हिस्से में ही देखा जा सकता है। पंजाब विधानसभा के लगभग सभी मंत्रियों को सत्र के दौरान उनके कार्यालय के लिए स्वतंत्र कमरे उपलब्ध करवाए गए हैं। इसके अलावा बहुत-सी विधानसभा इमारतों में मंत्रियों के अलावा विधानसभा समितियों के चेयरर्पसनस के कार्यालय स्थापित हैं। हरियाणा विधानसभा में माननीय मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी मंत्री या समितियों के चैयरपर्सन्स के लिए कार्यालय नहीं है।
सभी विधानसभाओं की कार्यप्रणाली एक समान
देश की सभी विधानसभाओं की कार्यप्रणाली एक समान है। विधानसभा सत्र के अलावा विधानसभा की समितियों का कार्य लगभग पूरे वर्ष चलता है। वर्तमान में हरियाणा विधानसभा समितियों की संख्या 15 है और प्रत्येक समिति की हर सप्ताह बैठक बुलाई जाती है। हरियाणा विधानसभा परिसर में मात्र 2 समिति कक्ष हैं, जहां ये समितियां तय समय सारणी के अनुसार बैठकें करती हैं। इसके चलते एक निश्चित समय सीमा में ही बैठकें संपन्न करनी पड़ती हैं। ऐसे में कई बार समिति अपनी बैठक की कार्यसूची में शामिल सभी कार्यों को पूरा नहीं पाती। इसके लिए यहां पर्याप्त संख्या में समिति कक्षों की आवश्यकता है।
देश भर की विधानसभा के सदस्यों की संख्या उनकी राज्यों की जनसंख्या के अनुसार कम या ज्यादा रहती है, लेकिन सभी विधान सभाओं की कार्यप्रणाली एक समान है। वर्तमान में हरियाणा विधानसभा सचिवालय में करीब 375 कर्मचारी सेवारत हैं, लेकिन इन सभी के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। इसके विपरीत पंजाब विधानसभा में एक कमरे में एक शाखा बैठती है और वहां सभी प्रथम श्रेणी अधिकारियों के लिए अलग-अलग कमरों का प्रावधान है। हरियाणा विधानसभा में एक कमरे में 3 से 4 शाखाओं को समायोजित किया गया है और अनेक कमरों में कैबिन्स बनाकर 7-7 प्रथम श्रेणी अधिकारियों के बैठने की व्यवस्था करनी पड़ रही है।
विधानसभाओं के लिए विधानभवन एक साझा स्थान
हरियाणा और पंजाब विधानसभाओं के लिए विधानभवन एक साझा स्थान है। वर्तमान पार्किंग स्थल दोनों विधानसभाओं के कर्मचारियों के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ दोनों विधानसभाओं के विधायकों और अधिकारियों के वाहनों की पार्किंग के लिए स्थान का अभाव हो जाता है। पंजाब के प्रत्येक विधायक के साथ सुरक्षा वाहन भी आता है। इस कारण पार्किंग स्थल में वाहनों को खड़ा करना एक समस्या बनी रहती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह संवेदनशील मामला है। जब दोनों राज्यों में सत्र एक साथ बुलाया जाता है तो दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों की गाड़ियों और उनके सुरक्षा वाहनों का अमला काफी बड़ा हो जाता है।
विधानभवन में पंजाब और हरियाणा के माननीय विधानसभा अध्यक्षों के लिए 2 प्रवेश द्वार निर्धारित हैं। इसके अलावा 5 अन्य प्रवेश द्वार हैं जो दोनों विधानसभाओं के कर्मचारियों और आमजन के लिए हैं। इन प्रवेश द्वारों पर कई बार दोनों विधानसभाओं के कर्मचारियों के बीच किसी न किसी विषय पर आपसी समन्वय नहीं होने के कारण समस्या बनी रहती है। यह सुरक्षा की दृष्टि से एक बड़ी समस्या है।
समय-समय पर राजनीतिक दलों की तरफ से मांग उठाई जाती रही है कि पंजाब विधानसभा की तर्ज पर हरियाणा विधानसभा परिसर में भी सभी पार्टियों के विधायक दलों के स्वतंत्र कार्यालयों का प्रावधान किया जाए, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में हरियाणा के पास स्थान का अभाव होने के कारण यह मांग पूरी नहीं की जा सकती।
वर्तमान दौर में मीडिया के बदलते स्वरूप और आवश्यकताओं के अनुसार आधुनिक सुविधाओं से लेस व्यवस्था विकसित करने की भी आवश्यकता महसूस हो रही है। हरियाणा प्रदेश और इसकी विधान सभा का गठन हुआ था, तब मीडिया का स्वरूप इतना बड़ा नहीं था। इसलिए प्रेस गैलरी समेत अनेक व्यवस्था उस समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई थी। अब तकनीकी विकास के कारण इस क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। अब प्रिंट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया ने भी समाज में विशिष्ट स्थान बनाया है। इसके मद्देनजर नए प्रकार की व्यवस्थाएं खड़ी करना समय की जरूरत बन चुकी है।
विधान सभा डिजीटलाइजेशन की तरफ कदम
हरियाणा विधान सभा डिजीटलाइजेशन की तरफ कदम दर कदम आगे बढ़ रही है। इसके लिए जिस प्रकार के संसाधन चाहिए, उसके लिए वर्तमान भवन अपर्याप्त है। इन सभी समस्याओं के निदान के लिए चण्डीगढ़ में हरियाणा विधान सभा के मौजूदा भवन के अतिरिक्त एक नई बिल्डिंग बनाने की आवश्यकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार भगवंत मान ने भी 9 जुलाई 2022 को ट्वीट कर नई विधान सभा और नई हाईकोर्ट के लिए जमीन मांगी है। उनकी इस मांग को भी इसी परिप्रेक्ष्य में लिया जा सकता है। वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के अनुसार नए भवनों का निर्माण कोई परंपरा नहीं है। यह विकास की सहज प्रक्रिया है।
ऐसा भी नहीं है कि चंडीगढ़ में किसी प्रदेश के कामकाज के लिए भवन निर्माण की मांग पहली बार की गई है। इससे पहले यहां हरियाणा और पंजाब के सिविल सचिवालयों का विस्तार कर क्रमश: सेक्टर 17 और सेक्टर 9 में नए भवन बने हैं। इन दोनों भवनों के बनने से चंडीगढ़ पर किसी भी प्रदेश के अधिकार व वर्चस्व का सवाल खड़ा नहीं हुआ। इस प्रकार का कोई सवाल इसलिए भी नहीं खड़ा हो सकता क्योंकि चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी जरूर है, इसके बावजूद एक केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर यह अपने आप में एक अलग इकाई भी है। यह हमारे देश के संघीय ढांचे की रचना है। कुछ नेताओं ने राज्यों के मानचित्र बदलने के अधिकार की भी बात उठाई है। उन्हें यह स्पष्ट होना चाहिए कि इस प्रकार भूमि के हस्तांतरण से किसी भी प्रकार से भौगोलिक बदलाव नहीं होता। चंडीगढ़ यूटी प्रशासन की ओर से हरियाणा विधान सभा के लिए आवंटित की जाने वाली 10 एकड़ भूमि चंडीगढ़ यूटी का ही हिस्सा रहेगी, ठीक ऐसे ही जैसे कि अन्य निजी या सार्वजनिक निकायों की दी जाने वाली भूमि संबंधित प्रदेश के नक्शे से बाहर नहीं जाती।
(लेखक हरियाणा विधान सभा के माननीय अध्यक्ष हैं।)
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